Thursday, July 24, 2008

~~~ जिंदगी - भरोसे का सफ़र ~~~

जिंदगी मे कई बार ऐसा होता है कि आपके अपने आपका भरोसा तोड़ जाते है... और कुछ बिल्कुल अंजाने लोग बिना कोई वजह..एक ही मुलाकात मे आपके भरोसे को मजबूत कर जाते है....

ये तब कि बात है जब मैं पहेली बार ट्रेक पर अकेले गई थी.. उस से पहेले मैने जो ट्रेक किया था वो प्री-प्लान था... जब फिरसे गई तो सब कुछ मैने अपने तरिके से अरेंज किया ... कहा से आना है, कहा कहा जाना है.... ट्रेक था मेरा कुल्लू कि खूबसूरत पार्वती वॅली मे... सरपास ..साल था 2004 ...कुछ लोग अहेमदाबाद से मेरे साथ होने वाले थे जिनको मैं कभी मिली नही थी ...सिर्फ़ फोन पर एकाद - दो बार बात हुई थी .. सो उन्हिके साथ हम ट्रेक के बेस कॅंप पर पहुँच गये ...ट्रेक तो मेरा बहोत अच्छा रहा .. गोआ ट्रेक नही किया था तब तक वो मुझे सबसे बेस्ट लगा ..आज भी जब आँखे बाँध करती हू तो सबसे पहेले वही रास्ते नज़र आते है...

वेल ...बात ट्रेक कि नही है.. वापस आने के लिए दीनो कि गिनती मैने ग़लत कर ली थी सो एक दिन एक्सट्रा पड़ा था मेरे पास... और वहा पूछने पर पता चला कि कुछ 3 घंटे कि दूरी पर एक पैंटिंग कि आर्ट गॅलर्री है नगर करके
विलेज मे... देविकारानी जी के पति रोरिक निकोलस क़ी ...और बहोत अच्छी है...... और मैने तय कर लिया कि मैं वही चली जाउन्गि .... आने जाने के मिलाकर 7 घंटे और 1.5 घंटा देखने के लिए... तो आराम से शाम तक वापस आ जाउन्गि ... बताया गया कि सुबह कॅंप के पास से कुल्लू के लिए बस मिल जाएगी .. वहा से दूसरी बस मे नगर और नगर से रिक्शा मे आर्ट गेलरी.

दूसरे दिन सुबह मैने बस पकड़ी ... कुल्लू पहुचि ... फिर नगर के लिए बस खड़ी थी तो सिर्फ़ पानी लेके बैठ गई ... नगर के लिए बस अक्सर नही जाया करती तो मुझे सारी बस के टाइमिंग्स को फॉलो करना था ...नगर से कुल्लू वापस आने के लिए सिर्फ़ बस मिलती थी ..और लास्ट बस शाम को 4.00 बजे कि थी ...ये ध्यान मे रखकर मूज़े सब करना था....

कुल्लू पहुचि मैं कुछ 12 बजे... वहा से नगर पहुचि दोपहर को 1.5 .... पता चला कि रिक्शा वाला बहोत सारे चार्जस ले रहा था सिर्फ़ 4 किलो मीटर जाने के ...ट्रेक करके आए थे और 12 किलो मीटर तो यू ही चल देते थे...सोचा.. चल लेती हू ... इतना ही तो है..

....सो शुरू किया चलना ...और चढ़ना.....काफ़ी सीधी चढ़ाई थी ... सो थोड़ी देर लगी पर 2.30 तक मैं पहुच गई उपर.... मेरे पास सिर्फ़ 4 बजे तक का टाइम था ... जिसमे मुझे आर्ट गलेरी भी देखनी थी और वापस 4 किलो मीटर नीचे जाना था.... पैदल.

खाना तो खाया नही था .... फिर भी शांति से सारे पेंटिंग्स देखे ... हिमालय के प्यार में लोग क्या क्या कर सकते है ये महसूस किया उसे देखते हुए ..... मुश्किल से 20-30 लोग थे उस वक्त वहा ....ज़्यादातर प्राइवेट कार करके आए थे....और इतने खूबसूरत पेंटिंग्स देखके मेरी सारी थकान उतर गई ... हिमालय के पर्वतो को काफ़ी खूबसूरती ढाला था रंगो मे.... बाहर निकली तो पता चला कि बिना किसी पॅसेंजर को लिए कोई रिक्शा वाला उपर तक आता नहि...तो या तो मुझे किसी रिक्शा का इंतज़ार करना था या फिर चलना शुरू करना था.. नीचे 4 बजे मेरी बस आके चली जाने वाली थी... और मेरी लास्ट बस बेस कॅंप के लिए कुल्लू से 5.30 कि थी .... सो मैने चलना शुरू किया... नीचे आकर पता चला 4.15 हो गये थे तो बस चली गई थी....

मुझे झटका सा लगा...पता चला कि अब मुझे अगले स्टेशन पर जो कि कुछ 5 किलो मीटर पर था...वहा जाके दूसरी बस मिल सकती है कुलु कि लिए...जहा से मुझे फिर कॅंप कि आखरी बस मिल जाएगी....अगर वो बस छूट गई तो मुझे रात कही कुल्लू मे बितानी पड़ेगी...जिसके लिए मैं कतई तैयार नही थी...सो मैने वहा रिक्शा वाले को पूछा...सबने मना कर दिय....सिर्फ एक रिक्शा वाले को नही पूछा...क्यूकी.. उसकी आँखे एकदम भूरी थी...और बंदा भी कुछ अजीब सा लग रहा था...तो मुझे थोड़ा डर लगा....खाना भी नही खाया था और अब चलने कि भी ताक़त नही थी....ज़्यादा सोचने का वक्त नही था मेरे पास....और वही एक बंदा लेके जाने को तैयार था....उसने पूछा सामने से...कुछ सोचा मैने और फिर बैठ गई रिक्शा मे....

सच कहु इतना ज़ोर से दिल कभी नही धड़का...ट्रेक पर 4 किलो मीटर बीच जंगल में बिना किसी साथी के चलने का डर नही लगा था मुझे....पर यहा सिर्फ़ एक भूरी आँखो वाले रिक्शा वाले से डर रही थी मैं... जाने कैसा हो...उसने रिक्शा स्टार्ट क़ी ...मुझसे बाते करने कि कोशिश करने लगा ...और मे हो सके उतने छोटे आन्सर्स देती रही....

वहा YHAI काफ़ी फेमस है अपने ट्रेक्स के लिए .. वहा के लोग काफ़ी रेस्पेक्ट देते है...तो बातो बातो में उसने जान लिया कि मैं YHAI कि ट्रेकर हू...पूछा आपको तो कसोल बेस कॅंप जाना होगा .. मैने कहा हा... तो ऑटो वाले ने कहा कि आपकी कुल्लू वाली बस तो निकल जाएगी....आप कुल्लू पहुचोगी तब तक.... मेरी हालत तो देखने को बनती थी .... पहाड़ी इलाक़ा था ... आधा जंगल ही था .... रास्ता बिल्कुल सुनसान था ... कहीसे कोई आता जाता नही था .... और नीचे क़ी तरफ जाना था तो काफ़ी शांति से ऑटो चला रहा था वो... उसे शायद पता चल गया था कि मैं उसको टालने क़ी कोशिश कर रही हू...

अचानक एक टर्न के पास...एक छोटे से गॅरेज के आगे उसने अपनी ऑटो थमा दी.... मुझे वैसे ही देर हो रही थी.. और वो बंदा आरामसे अंदर जाके किसीसे कुछ बात करने लगा...आप सोच सकते हो कैसा हुआ होगा ... इतनी बड़ी जंगल जैसी जगह पर कोई प्राणी आ जाए तो जितना डर नही लगता उससे ज़्यादा मुझे डर लग रहा था..और चुपचाप बैठे रहने के अलावा मेरे पास कोई चारा नही था..मैं वही चुपचाप बैठी रही....अचानक वो बंदा अपने साथ एक देहाती औरत और उसके बच्चे को साथ ले आया... मुझे कहा कि ये भी अपने साथ चलेंगे...चलेगा ना....मैने चैन कि सांस ली...खुशी से कहा क्यू नही....फिर थोड़ी देर उसने कुछ बाते कि वो औरतसे...फिर वापस मुझसे बाते शुरू क़ी.... अब मेरा डर कम हो गया था...उसने फिर तो जो ऑटो भगाया...मुझे वो रेस से कम नही लगा .....मुझसे कहा ...कि आप चिंता मत कीजिए ...मैं आपको बस मे बिठा दूँगा और ड्राइवर को बोल दूँगा कि आपको दूसरी बस मे रास्ते मे ही बिठा दे....अब क़ी जो बस जाने वाली थी उसका ड्राइवर उसकी पहेचन वाला था...मेरी तो जान निकल रही थी... आगे वाला वो गाँव आया तो बिचमे एक जगह फटाफट वो देहाती औरत को उतार कर सीधा बस डीपो के अंदर रिक्शा ले लिया...जहा बस खड़ी थी कुल्लू के लिए...मुझे कहा आप पहेले बस मे चले जाओ फिर पैसे देना... और उसने वही से चिल्लाकर ड्राइवर को बोल दिया कि मुझे कसोल कि बस मे बिठा दे... बस जाने क़ी तैयारी में ही थी ... तो मैने जल्दी से उनको पैसे थमा दिए और भाग के बस मे चली गई ... फिर याद आया कि उस बंदे को मैने थॅंक्स तक नही किया...

बस ड्राइवर ने भी काफ़ी हेल्प कि...कुल्लू मे आते ही सामने से आने वाली सारी बस चेक कर रहा था कि मेरी बस जा तो नही रही... और सामने ही बस आई...उसने खिड़की से सर निकल कर बस वाले को रोका और मुझे रास्ते मे ही बस पकड़वाई जो क़ी लास्ट बस थी कसोल के लिए....और रात को 9 बजे बेस कॅंप पहुचि.....

कसोल क़ी बस में बैठ कर पूरे रास्ते मैं यही सोचती रही क़ी उस बंदे का क्या गुनाह था जो मैने उस पर भरोसा नही किया...वो कभी पहेले मुझसे मिला नही था...ना किसीने मुझे उसके बारे मे कुछ कहा था क़ी वो ऐसा है वैसा है...फिर मैने क्यू मान लिया क़ी वो ऐसा वैसा होगा...और सबसे बुरी बात क़ी वो समझ पाया था ये बात...तभी उसने बेवजह वो देहाती औरत को साथ लिया था...ताकि मैं आरामसे बैठ सकु वहाँ...मुझे बहोत शर्म आ रही थी...उसने कितनी मासूमियत से बिना किसी वजह मेरी हेल्प क़ी थी.... और मे बस .....ऐसे ही.... अपने किसी दूसरे अनुभव क़ी वजह से उस पर भरोसा नही कर रही थी...आज तक ये अफ़सोस है मुझे...क़ी मैं उस बंदे को थॅंक्स तक नही कहे पाई...सिर्फ़ इस लिए नही क़ी उसने मुझे मेरी उस दिन क़ी मंज़िल तक पहुचनाए मे मदद क़ी पर इस लिए भी उस दिन मैने जिंदगी मे वापस भरोसा करना सीखा...जो मैं शायद भूल गई थी....

उसके बाद सरप्राइसिंगली मैं और दो बार वही जगह जाके आई...हर बार मेरी आँखे उसे ढूंढी रही क़ी मैं उसे कह सकु...कि आज भी बस उसी वजह से मेरा भरोसे पर का भरोसा कायम है...कुछ अंजान लोग अपनो से बढ़कर कुछ दे जाते है.