Saturday, June 28, 2008

~~~ एक छोटे से सफ़र में......~~~

कुछ साल पहले की बात है…..किसी काम से मैं अजमेर जा
रही थी… आहएमदाबादसे ट्रेन में जाना था….शाम की ट्रेन थी जो मुझे रात को
करीब 1.30 बजे अजमेर पहुचने वाली थी… अकेले इतना लंबा सफ़र मैं पहली
बार कर रही थी… पर काफ़ी खुश थी क्योकि कई महीनो से अपने लिए वक्त नही
मिल पा रहा था…और अब ट्रेन में पूरे 8 घंटे सिर्फ़ मेरे अपने थे…. सोचा था
खुद से अच्छी मुलाकात होगी….

ट्रेन आई और जैसे ही अपनी सीट ढूंढी मैने….मूड
खराब सा हो गया…..एक भरा पूरा सिंधी फॅमिली था… जिसमे जिट्नी बड़े थे उससे ज़्यादा बच्चे थे
…..और जो बड़े थे वो बच्चो को बड़ा कहलवाए वैसे थे…..सिर्फ़ उन्ही की आवाज़े
सुनाई दे रही थी …. मेरे बाजू में एक मोटी सी आंटी और दूसरी और एक दादाजी
बैठे थे….जिनका नॉनस्टॉप ऑडियो चालू था…..हर 5 मीं पर मुझको दोनो में से
किसी का हाथ तो किसी की कोहनी लगती और सॉरी सुनने को मिलता……वैसे ही सॉरी
शब्द से मुझे कुछ नफ़रत सी है…जब सुनना पड़े तो …

आधे घंटे में मैं पक गई पूरी….ऐसा लगा किसी ने मुझे
आलू समझ कर प्रेशर कुक्कर में डाल दिया है…. ट्रेन के कोच का एक
चक्कर लगाया….देखा की आगे वाले कम्पार्टमेंट में ही एक साइड सीट खाली पड़ी
है.. टिकट चेकर के आते ही मैने उससे बात की …..वो समझ गया
की मैं बुरी फसि हू उस फॅमिली के बीच में….मुझे उसने शिफ्ट कर दिया …. जहा
मुझे सीट दिखी थी….फॉर्चुनेट्ली सामने की सीट पर कोई नही था….तो पूरी साइड
सीट मेरी ही थी…. हमेशा से मेरी पसंदीदा सीट…

वो जो कम्पार्टमेंट था उसमे और उसके आगे कुल मिलके 28 बच्चो का ग्रूप था…. कराटे के कोई कॉंपिटेशन में वो
लोग हिस्सा लेने देल्ही जा रहे थे…..सब मुजसे थोड़े से छोटे थे…थोड़ी देर उनकी आवाज़े सुनती रही ….फिर मैने खिड़के से अपना नाता जोड़ लिया……उस वक्त ज़ो दिखा...जो देखा ...ज़ो ख़याल आए …ज़ो महसूस किया वही ट्रेन में बैठे बैठे … ….जिससे पल भर के लिए नाता जुड़ा …. जिसने पल भर में ही दिल में जगह बना ली…उस सब ख़यालो ने शब्दो का रूप पकड़ा ….आधे अधूरे शब्दो का……. कोरे काग़ज़ कुछ ही देर में महेकने से लगे…..कुछ महक उन खुश्बू की आपके लिए…..ज़ो लिखा था वो गुजराती में था…कुछ हिस्सा यहा पर हिन्दी में वापस लिख रही हू ….

तबले के लय जैसी ट्रेन के चलने की आवाज़ … पत्थरो से आता है जैसे संगीत….एक
अकेली लड़की का हो कोई गीत….गुलमहोर की लाल लाल उदासी….खेतो पर जुक्ति हुई
शाम की सुनहरी सी धूप…हरे पेड़ो के नीचे चुपचाप बैठा हुआ हवा का एक
ज़ौका…पारिजात की पंखुड़ी जैसे बिखरे पड़े हुए कुछ बादल के टुकड़े….रुठ्के
गया होगा सूरज यहा से जो मिट्टी काली पड़ गई है यहा….कही से आई है पहचानी
सी खुश्बू……अरे ये तो चने की दाल वाला आया!!! …. कच्चे आम की भीनी भीनी
खुश्बू…खिड़की से बाहर बैशाखी धूप में खिला हुआ आम का पेड़…..हरे काले से
पत्तो के बीच में से मुस्कुराती है मोज़ार….पीले पीले फुलो से भरे हुए अमलतास
के पेड़….इंतज़ार में है की कब हवा का ज़ौका आए और वो बरसे…..किसी का कही पर जब मन तरसे….



धरती पर बिछी है एक पीली चादर सी……..अरे! गेंदे के फुलो
का खेत….बागीचा नही….एक अंजना सा गाव….पुलिया से जाते वक्त ट्रेन की बदलती
है आवाज़…नीचे है एक नदी….पानी सिर्फ़ नाम का……हमारे नही काम का…. आए
है कुछ खेत….खेत में पीपल का पेड़….पेड़ के नीचे लकड़ी का
ढाँचा….अकेला…..खेत्में है ना कुछ और ना कोई ….बाजू वाले कम्पार्टमेंट से
सुनाई दी है किसी की गुनगुनाहट ….कोई लड़का सुना रहा है लड़की को कोई गीत…

नज़दीक आ रहा है कोई स्टेशन…..दूसरी ट्रेन की लंबी
सी सिटी…..जैसे की दो सहेलियो का हुआ हो मिलन…..पूर्णिमा के खिले हुए चाँद
जैसा नज़र आता है सूरज….खाली पड़ी हुई है बेंच….मेरे सामने है जैसे
खाली कोई सीट…..सिंधी का रोता हुआ बच्चा…..खेतो से गुज़रता है कोई
रास्ता…..सुनहरी धूप हो रही है गुम…..और खुल रही है कोई कविता की भूली
बिसरी पंक्तिया ….किलो मिटेर दिखता हुआ पत्थर…..धन्तुरे के फूल, छोटे से पेड़ के
नीचे छोटा सा मंदिर…गद्दे पर लकड़ी मरके धूल उड़ाता कोई बुढ्ढा….बेंच पर
सर टीकाके सोया है कोई आदमी…कभी कुछ भरने को काम आई होगा वो टूटा हुआ
गमला…..हवा में उड़ता हुआ खबर का अख़बारी टुकड़ा…..

अचानक चमकी है बिजली……और पहली बारिश….ओफ्फ ….. मैं तो
ट्रेन में हू….. ठंडी हावके ठंडे ठंडे ज़ौके…. आ गया
है मेरा स्टेशन ….. हल्की हल्की बरसाती
बारिश ….स्टेशन के बाहर चौक मैं दो पेड़…..रात के अंधेरे में चमकते
हुए…..उस पर है हज़ारो के तादाद में तोते….जैसे के समाधि लगाई हो उन्होने
…..लगता है की तोते का हो पेड़…..हरा ..हरा…..भरा भरा…

Friday, June 20, 2008

~~~वापस तो आना है .... ~~~

वादा किया था की 20 दिन में वापस अवँगी … पर 20 के कुछ 30 से ज़्यादा दिन हो गये… इस बार हाथो की लकीरो में शायद कुछ ज़्यादा ही वक्त लिखा था हिमालय के पास जाने का और बार बार जाने का….

सरपास से ही शुरू करती हू मैं… अभी तक के जीतने ट्रेक किए उसमे जो कुछ बाकी था … उसका काफ़ी कुछ इस ट्रेक में मेहूसुस करने को मिल गया… पहुचते ही फिर से वही गोद मिली जो चार साल पहले महसूस की थी … कसोल .. हमारे यूथ हॉस्टिल का बेस कॅंप … जो की पड़ता है भुंतर के पास…भुंतर कुल्लू जाते वक्त रास्ते में ही पड़ता है… वहाँ से बस लेकर हम एक – डेढ़ घंटे में पहुचे कसोल … कसोल के बारे में कहु तो वो एक जैसे रहस्यमयी कस्बा है … एक ही रोड पर गाँव शुरू होते ही ख़तम हो जाता है…..शिखो का गुरुद्वारा जहा पर गर्म पानी का ज़रना बहता है …मणीकरण…वो वही से 4 किलोमीटर की दूरी पर है….इसलिए थोड़ा बहोत लोग जानते है कसोल के बारे में …. मेरी पसंदीदा जगह है …..



हमारा बेस कॅंप कसोल मैं से गुज़रती पार्वती नदी के किनारे पर है…सुबह की ठंडी हवा चल रही है … और बेस कॅंप के पास आते ही …किसी नर्सरी स्कूल की रिसेस में जैसे छोटे बच्चो की किलकरियो की आवाज़ आती है….नदी की किलकरी सुनाई देती है ….बहाव इतना तेज है की अगर अपल्क देखा किया तो भी साथ बहा ले लाएगा…अभी तक के सारे ट्रेक का सबसे अच्छा बेस कॅंप भी यही है….

शुरुआती फॉरमॅलिटीस पूरी करने के बाद हमे हमारे टेंट दिए जाते है…कुछ नये लोगो से पहेचान होती है …. अलग राज्य , अलग शहर , अलग बोली और अलग संस्कृति की भी साथ में पहेचान मिलती है….कहा से हो आप? अच्छा पुणे से? वो तो पास है …. बस बारा – एक घंटो का सफ़र ….ऐसे बाते चलती रहती है …..




वही ठहराना है दो दिन … और शेड्यूल कोई हेक्टिक भी नही है…किसी बात की जल्दी नही है और कोई काम बाकी नही है…..मन भागता है कही, पर - जाने को कुछ नही है….पहले दिन सेट नही होता मन … लगता है जैसे कही टाइम वेस्ट तो नही हो रहा? दूसरे दिन से वो शांति की आदत हो जाती है….और फिर धीरे धीरे वही शांति नस नस में समा जाती है….

3 तीन के बाद हमारा ट्रेक शुरू होता है….एक बस हमे हमारे ट्रेक रूट पर छोड़ जाती है…उतरना है वहाँ से ….कुछ लोगो ने लकड़ी का सहारा ले लिया है …और आसमान को देखते हुए हमारा ट्रेक शुरू होता है… टेढ़े मेढ़े रास्तो से निकल कर हम चलते जाते है…एक परबत को उतर के सामने वाले परबत के पीछे की और पहुचना है बाकी …..उसके उपर तक जाना है बस…कुछ 1000-1500 फ्ट की चढ़ाई और 6 किलोमीटर चलना है…हो जाएगा …..बस बारिश ना हो….पहाड़ो पर बारिश से मुझे अक्सर डर हैऔर … अगर चलना बाकी हो तो ……

लंच पॉइंट नज़दीक है अब….पर हल्की हल्की बूंदे बरस रही है…लोग एंजाय कर रहे है…पहली बारिश है …. और हम भी 44 डेग्रीसे अभी 24 डिग्री में आए हुए है…तो अच्छा लग रहा है…थोड़ी देर में सारे बादल पूरी वादी को घेर लेते है…10 कदम आगे कौन है पता नही चल रहा…सबने अपनी बरसाती ओढ रखी है …और अब बारिश भी काफ़ी तेज हो गई है …..हम वही ठहर जाते है और थोड़ा कुछ खा लेते है….बारिश के रुकने का इंतज़ार नही किया जा सकता …इसलिए चलना ज़रूरी है…चल देते है….आगे की पहाड़ी के चोटी के पास ही हमारा कॅंप लगा है….



ह्म्‍म्म….अब ठीक है… आस पास की चोटियो पर गिरा बर्फ जैसे की बुला रहा है ….वहा से आती ठंडी लहरे कंपा जाती है…..उसमे हल्की सी धूप ….वा … और क्या कहेना….

आगे के दिन चढ़ाई है पूरी …..कही उतरना…कही चढ़ना…कही बड़े बड़े पत्थरो के बीच से…कही बर्फ से जमे किसी झरने के उपर से….कही भीगे पत्तो के उपर से….कही गीली मिट्टी पर पाव डालके…कही बर्फ में अपने निशा को पिघलता देखते हुए ….कही हवासे खुद को बचाते , छिपाते चलते जाते है ....



बारिश….स्नो फॉल….स्नो स्टोर्म…सब मिलता है यहा…जब भी एक्सपेक्ट ना करो… पर अच्छा लगता है …. पता चलता है की जिंदगी से ज़्यादा अनप्रिडिक्टबल कुछ भी नही …सर्प्राइज़िंग भी कुछ भी नही ….जहा रूलाती है वही हसा देती है.ऽउर जहा हसती है वही रुला देती है…जहा लगा की सब ख़तम …वही नई शुरआत होती है ……. और हर नई शुरुआतपता पीछे कोई कुछ ख़तम हुआ सा होता है ...



बर्फ को …..देखते बस एक ही ख़याल आता है …. काश की जिंदगी को हम ऐसा बना सकते…..आज अभी पड़ी बर्फ जैसा…..ताज़ा ….



सरपास पे इस बार अच्छी बर्फ है…और हमारा तो स्वागत ही बर्फ ने खुद आकर किया है … चारो और बिना दाग वाली बर्फ बिखरी पड़ी है….और लगता है जैसे की कोई कदम रखेगा तो मैली हो जाएगी…..बिल्कुल शांति है…कोई पंछी तक की आवाज़ नही ….. सब खुशी से चुप से हो गये है ……13500 फीटट पर हवा भी महसूस करने लायक होती है...

बर्फ में जाओ और स्लाइड ना करो तो बर्फ में जाना बेमतलब कहा जाता है….इसलिए हमारे लिए वहाँ 4-5 स्लाइड तैयार है…बर्फ से जब बाहर आते है….तो अपने साथ ढेरो बर्फ ले आते है …..



वापस तो आना है ....तो समेटने की कोशिश करते है ..... बर्फ को काश ले आती ...पर पिघल ही जाती है जब भी लाओ.. जितनी लाओ……और फिर अपने वॉटरमार्क्स जैसे छोड़ जाती है यादो के रूप में…..कुछ वॉटरमार्क्स की लिंक दे रही हू….आपको भी बर्फ मुबारक हो!!


http://www.flickr.com/photos/meetsall/sets/72157605115764860/