Friday, June 20, 2008

~~~वापस तो आना है .... ~~~

वादा किया था की 20 दिन में वापस अवँगी … पर 20 के कुछ 30 से ज़्यादा दिन हो गये… इस बार हाथो की लकीरो में शायद कुछ ज़्यादा ही वक्त लिखा था हिमालय के पास जाने का और बार बार जाने का….

सरपास से ही शुरू करती हू मैं… अभी तक के जीतने ट्रेक किए उसमे जो कुछ बाकी था … उसका काफ़ी कुछ इस ट्रेक में मेहूसुस करने को मिल गया… पहुचते ही फिर से वही गोद मिली जो चार साल पहले महसूस की थी … कसोल .. हमारे यूथ हॉस्टिल का बेस कॅंप … जो की पड़ता है भुंतर के पास…भुंतर कुल्लू जाते वक्त रास्ते में ही पड़ता है… वहाँ से बस लेकर हम एक – डेढ़ घंटे में पहुचे कसोल … कसोल के बारे में कहु तो वो एक जैसे रहस्यमयी कस्बा है … एक ही रोड पर गाँव शुरू होते ही ख़तम हो जाता है…..शिखो का गुरुद्वारा जहा पर गर्म पानी का ज़रना बहता है …मणीकरण…वो वही से 4 किलोमीटर की दूरी पर है….इसलिए थोड़ा बहोत लोग जानते है कसोल के बारे में …. मेरी पसंदीदा जगह है …..



हमारा बेस कॅंप कसोल मैं से गुज़रती पार्वती नदी के किनारे पर है…सुबह की ठंडी हवा चल रही है … और बेस कॅंप के पास आते ही …किसी नर्सरी स्कूल की रिसेस में जैसे छोटे बच्चो की किलकरियो की आवाज़ आती है….नदी की किलकरी सुनाई देती है ….बहाव इतना तेज है की अगर अपल्क देखा किया तो भी साथ बहा ले लाएगा…अभी तक के सारे ट्रेक का सबसे अच्छा बेस कॅंप भी यही है….

शुरुआती फॉरमॅलिटीस पूरी करने के बाद हमे हमारे टेंट दिए जाते है…कुछ नये लोगो से पहेचान होती है …. अलग राज्य , अलग शहर , अलग बोली और अलग संस्कृति की भी साथ में पहेचान मिलती है….कहा से हो आप? अच्छा पुणे से? वो तो पास है …. बस बारा – एक घंटो का सफ़र ….ऐसे बाते चलती रहती है …..




वही ठहराना है दो दिन … और शेड्यूल कोई हेक्टिक भी नही है…किसी बात की जल्दी नही है और कोई काम बाकी नही है…..मन भागता है कही, पर - जाने को कुछ नही है….पहले दिन सेट नही होता मन … लगता है जैसे कही टाइम वेस्ट तो नही हो रहा? दूसरे दिन से वो शांति की आदत हो जाती है….और फिर धीरे धीरे वही शांति नस नस में समा जाती है….

3 तीन के बाद हमारा ट्रेक शुरू होता है….एक बस हमे हमारे ट्रेक रूट पर छोड़ जाती है…उतरना है वहाँ से ….कुछ लोगो ने लकड़ी का सहारा ले लिया है …और आसमान को देखते हुए हमारा ट्रेक शुरू होता है… टेढ़े मेढ़े रास्तो से निकल कर हम चलते जाते है…एक परबत को उतर के सामने वाले परबत के पीछे की और पहुचना है बाकी …..उसके उपर तक जाना है बस…कुछ 1000-1500 फ्ट की चढ़ाई और 6 किलोमीटर चलना है…हो जाएगा …..बस बारिश ना हो….पहाड़ो पर बारिश से मुझे अक्सर डर हैऔर … अगर चलना बाकी हो तो ……

लंच पॉइंट नज़दीक है अब….पर हल्की हल्की बूंदे बरस रही है…लोग एंजाय कर रहे है…पहली बारिश है …. और हम भी 44 डेग्रीसे अभी 24 डिग्री में आए हुए है…तो अच्छा लग रहा है…थोड़ी देर में सारे बादल पूरी वादी को घेर लेते है…10 कदम आगे कौन है पता नही चल रहा…सबने अपनी बरसाती ओढ रखी है …और अब बारिश भी काफ़ी तेज हो गई है …..हम वही ठहर जाते है और थोड़ा कुछ खा लेते है….बारिश के रुकने का इंतज़ार नही किया जा सकता …इसलिए चलना ज़रूरी है…चल देते है….आगे की पहाड़ी के चोटी के पास ही हमारा कॅंप लगा है….



ह्म्‍म्म….अब ठीक है… आस पास की चोटियो पर गिरा बर्फ जैसे की बुला रहा है ….वहा से आती ठंडी लहरे कंपा जाती है…..उसमे हल्की सी धूप ….वा … और क्या कहेना….

आगे के दिन चढ़ाई है पूरी …..कही उतरना…कही चढ़ना…कही बड़े बड़े पत्थरो के बीच से…कही बर्फ से जमे किसी झरने के उपर से….कही भीगे पत्तो के उपर से….कही गीली मिट्टी पर पाव डालके…कही बर्फ में अपने निशा को पिघलता देखते हुए ….कही हवासे खुद को बचाते , छिपाते चलते जाते है ....



बारिश….स्नो फॉल….स्नो स्टोर्म…सब मिलता है यहा…जब भी एक्सपेक्ट ना करो… पर अच्छा लगता है …. पता चलता है की जिंदगी से ज़्यादा अनप्रिडिक्टबल कुछ भी नही …सर्प्राइज़िंग भी कुछ भी नही ….जहा रूलाती है वही हसा देती है.ऽउर जहा हसती है वही रुला देती है…जहा लगा की सब ख़तम …वही नई शुरआत होती है ……. और हर नई शुरुआतपता पीछे कोई कुछ ख़तम हुआ सा होता है ...



बर्फ को …..देखते बस एक ही ख़याल आता है …. काश की जिंदगी को हम ऐसा बना सकते…..आज अभी पड़ी बर्फ जैसा…..ताज़ा ….



सरपास पे इस बार अच्छी बर्फ है…और हमारा तो स्वागत ही बर्फ ने खुद आकर किया है … चारो और बिना दाग वाली बर्फ बिखरी पड़ी है….और लगता है जैसे की कोई कदम रखेगा तो मैली हो जाएगी…..बिल्कुल शांति है…कोई पंछी तक की आवाज़ नही ….. सब खुशी से चुप से हो गये है ……13500 फीटट पर हवा भी महसूस करने लायक होती है...

बर्फ में जाओ और स्लाइड ना करो तो बर्फ में जाना बेमतलब कहा जाता है….इसलिए हमारे लिए वहाँ 4-5 स्लाइड तैयार है…बर्फ से जब बाहर आते है….तो अपने साथ ढेरो बर्फ ले आते है …..



वापस तो आना है ....तो समेटने की कोशिश करते है ..... बर्फ को काश ले आती ...पर पिघल ही जाती है जब भी लाओ.. जितनी लाओ……और फिर अपने वॉटरमार्क्स जैसे छोड़ जाती है यादो के रूप में…..कुछ वॉटरमार्क्स की लिंक दे रही हू….आपको भी बर्फ मुबारक हो!!


http://www.flickr.com/photos/meetsall/sets/72157605115764860/

4 comments:

Udan Tashtari said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

कुश said...

क्या बात है जी... बहुत बढ़िया रहा आपका ट्रेक

डॉ .अनुराग said...

वाह फोटो देखकर जलन हो गई...बर्फ की पहडियो को जिस तरह कलमबद्ध किया है आपने .खूब है....उम्मीद है ये यात्रा अपने दिलचस्प मोडो से अभी ओर गुजरेगी...

सुभाष नीरव said...

बहुत सुन्दर मीता। चित्र संयोजन तो खींचता ही है, तुम्हारा लिखा भी प्रभावित करता है। इसकी निरंतरता बनाए रखो। बस, कहीं-कहीं जो शब्दों की अशुद्धियाँ हैं, वे पुन: न हों, इसका ख़याल रखो। शुभकामनाएं !