Sunday, April 27, 2008

सरपास - फिर से कदम उसी और...

हिमालय

ये नाम जब भी लेती हू ऐसा लगता है जैसे ईश्वर का नाम लिया हो और उसे महेसुस किया हो !! कई बार ऐसा होता है कि कुछ जगह हमे अक्सर अपने पास खींच लेती है ... हिमालय के जब पहली बार बहोत दूर से दर्शन हुए थे ; पता नही ऐसा क्या हुआ कि तय कर लिया था कि एक दिन वहाँ ज़रूर जाउन्गि... और बस दूसरे ही साल मैं निकल पड़ी हिमालय कि और..... और तब से लेकर आज तक उसके साथ ऐसा रिश्ता बन गया है कि छूट -ता नही और मैं छोड़ना भी नही चाहती....

यूँ ही घूमना फिरना मुझे ज़्यादा नही पसंद..... उसमे भी उन जगहो पर जाना तो बिल्कुल नही पसंद जहा अक्सर लोग भीड़ लगा के खड़े हो जाते है जैसे कि वहाँ कोई अजूबा लगा हो !!! ... किसी भी हिल स्टेशन पर जाओ ... आजकल वहाँ बस भीड़ और भीड़ नज़र आती है..... 2004 में जब पहली बार हिमालय पर गई तो ऐसा लगा कि कभी वापस आना ही नही चाहिए.....

सरपास शिवालिक घाटी में आया हुआ एक परबत है .... जिसके बीच में झील है ... जो बर्फ के गिरने पर जम के खुद भी बर्फ बन जाती है...... और जब हम सरपास ट्रेक के लिए जाते है तो उस जमी हुई झील को पार करना होता है..... यानी कि हमारा गाइड कुछ दूरी तय करने पर चेक करता है कि आयेज बर्फ इतनी जमी हुई है कि 50-60 लोग उस पर से होकर गुज़र सके....... वरना कई बार ऐसा होता है कि आप बर्फ समझ कर चलने जाओ और वाहा पानी हो .... हर तरफ बर्फ कि चादर होती है ... ऐसा लगता है कि चाँद जैसे नहा के सो रहा है वहाँ ..... तारे कुछ यू चमकते है जैसे कि आईना देख के मुस्कुरा दिया हो किसी प्रियतमाने .... हिमालय कि रात बहोत खूबसूरत होती है .....अगर वो जॅंगल में हो तो भी और बर्फ के बीच हो तो भी.... जॅंगल में बस ऐसा लगता है कि कुछ ऱुशिमुनी बैठकर आने वाले दिनो कि चर्चा कर रहे है... पत्तो के बीच से होकर जो हवा गुजराती है तो लगता है कि ईश्वर का कोई दूत आके संदेशा दे गया हो...... और गहरी होती पलको पर नींद कुछ यूँ आती है कि जैसे अमावस का अंधेरा छा गया हो !!



रात से ज़्यादा खूबसूरत होती है सुबह......सुबह को सूरज निकलता है तो लगता है कि जैसे सारे पहाड़ अंगड़ाई लेते हुए खड़े है ... पूछ रहे है कि आज क्या करना है पूरे दिन …. बादलो को रास्ता दिखाना है या रोक लेना है उन्हे कुछ पल के लिए….. रात को सारे परबत जैसे और करीब आ जाते है हमारे…….फुसफुसाते है और जाने क्या बतियाते है हम से……शायद जो समझ सकता होगा उनकी बात वो ऋषि बन जाता होगा और फिर वही ठहर जाता होगा….

वहाँ चलते वक्त लगता है जैसे कि अभी सीखे हम चलना..….. वहाँ जाकर सारे अभिमान गिर जाते है रस्तो पर…. ट्रेक के बारे मे लिखे तो एक दो दिन के बाद सबसे पहले कट होती है इलेक्ट्रीसिटी…..यानी कि बिजली बंद….यानी कि सारे फोन भी बंद … मतलब दुनिया के आधे कम्यूनिकेशन का वही अंत…..(वैसे कभी कभी अखरता है ये अब) …. 3-4 दिन के बाद पोल्यूशन कि भी कमी हो जाती है….. थोडा और उपर जाओ तो हवा भी रॅशन में मिलती है जैसे…पर उसके सामने मिलती है….अदभुत शांति….. बेपनाह खूबसूरती……जिनको छोड़ कही जाने का मन नही करता……. कई बार लगता है कि हम ईश्वर कि गोद में बैठे है……

वापस आना…. सबसे मुश्किल होता है…… बियास और पार्वती नदी जैसे हमे रोकती रहती है…साथ साथ चलती है.. कहती है कि रुक जाओ बस…….मैं हर बार वादा करती हू वापस आने का तब जाके कही छोड़ती है भीगी आँखोसे……..और वादे निभाए बिना चलता नही……..जाना पड़ता है….जा रही हू ……20 दिन बाद इसी ट्रेक के बहोत सारी यादे लेकर आ रही हू वापस इसी ब्लॉग पर…..तब तक….आप इंतज़ार कीजिए…..

7 comments:

डाॅ रामजी गिरि said...

बादलो को रास्ता दिखाना है या रोक लेना है उन्हे कुछ पल के लिए….. रात को सारे परबत जैसे और करीब आ जाते है हमारे…….फुसफुसाते है और जाने क्या बतियाते है हम से……शायद जो समझ सकता होगा उनकी बात वो ऋषि बन जाता होगा और फिर वही ठहर जाता होगा….

अद्भुत , मोहक , लाजवाब...

Neelam said...

Wow!!! Can i Join u ??/...i know i can't...but definetly wld join u in future. As u described the things , want to be there for always.

Priyesh said...

hmmmmm !!!!
have a very nice, wonderful and safe trek.
waiting for the new experiance and pics....

कुश said...

wish u a very happy journey.. agli baar hum bhi sath honge..

पारुल "पुखराज" said...

yaar humey bhi liye chalo saath.... tumaraa ek ek lafz kheench rahaa hai....bahut kuch mehsuus ho gaya itni der me....vo chaand,vo taarey,vo angdaayi,vo phusphusaahat--sab sab

डॉ .अनुराग said...

i am jealous of you people...idhar masroofiyat aor zindgi ki jimmedariya fursat nahi deti....

उन्मुक्त said...

हमने भी मज़ा ले लिया।